Prime Minister’s Office of India

04/16/2022 | Press release | Distributed by Public on 04/16/2022 03:24

Text of PM’s address while unveling 108ft statue of Hanuman ji in Morbi, Gujarat

Prime Minister's Office

Text of PM's address while unveling 108ft statue of Hanuman ji in Morbi, Gujarat

Posted On: 16 APR 2022 2:46PM by PIB Delhi

नमस्‍कार!

महामंडलेश्वर कंकेश्वरी देवी जी और राम कथा आयोजन से जुड़े सभी महानुभाव, गुजरात की इस धर्मस्थली में उपस्थित सभी साधु-संत, महंत, महामंडलेश्वर, एच सी नंदा ट्रस्ट के सदस्यगण, अन्य विद्वान और श्रद्धालुगण, देवियों और सज्जनों! हनुमान जयंती के पावन अवसर पर आप सभी को, समस्त देशवासियों को बहुत-बहुत शुभकामनाएं! इस पावन अवसर पर आज मोरबी में हनुमान जी की इस भव्य मूर्ति का लोकार्पण हुआ है। ये देश और दुनियाभर के हनुमान भक्तों, राम भक्‍तों के लिए बहुत सुखदायी है। आप सभी को बहुत-बहुत बधाई!

साथियों,

रामचरित मानस में कहा गया है कि- बिनु हरिकृपा मिलहिं नहीं संता, यानिईश्वर की कृपा के बिना संतों के दर्शन दुर्लभ होते हैं। मेरा यह सौभाग्य है कि बीते कुछ दिनों के भीतर मुझे मां अम्बाजी, उमिया माता धाम, मां अन्नपूर्णा धाम का आशीर्वाद लेने का मौका मिला है। अब आज मुझे मोरबी में हनुमानजी के इस कार्य से जुड़ने का, संतों के समागम का हिस्सा बनने का अवसर मिला है।

भाइयों और बहनों,

मुझे बताया गया है कि हनुमान जी की इस तरह की 108 फीट ऊंची प्रतिमा देश के 4 अलग-अलग कोनों में स्थापित की जा रही हैं। शिमला में ऐसी ही एक भव्य प्रतिमा तो हम पिछले कई वर्षों से देख रहे हैं। आज यह दूसरी प्रतिमा मोरबी में स्थापित हुई है। दो अन्य मूर्तियों को दक्षिण में रामेश्वरम और पश्चिम बंगाल में स्थापित करने का कार्य चल रहा है, ऐसा मुझे बताया गया।

साथियों,

ये सिर्फ हनुमान जी की मूर्तियों की स्थापना का ही संकल्प नहीं है, बल्कि ये एक भारत श्रेष्ठ भारत के संकल्प का भी हिस्सा है। हनुमान जी अपनी भक्ति से, अपने सेवाभाव से, सबको जोड़ते हैं। हर कोई हनुमान जी से प्रेरणा पाता है। हनुमान वो शक्ति और सम्बल हैं जिन्होंने समस्त वनवासी प्रजातियों और वन बंधुओं को मान और सम्मान का अधिकार दिलाया। इसलिए एक भारत, श्रेष्ठ भारत के भी हनुमान जी एक अहम सूत्र हैं।

भाइयों और बहनों,

इसी प्रकार रामकथा का आयोजन भी देश के अलग-अलग हिस्सों में लगातार होता रहता है। भाषा-बोली जो भी हो, लेकिन रामकथा की भावना सभी को जोड़ती है, प्रभु भक्ति के साथ एकाकार करती है। यही तो भारतीय आस्था की, हमारे आध्यात्म की, हमारी संस्कृति, हमारी परंपरा की ताकत है। इसने गुलामी के मुश्किल कालखंड में भी अलग-अलग हिस्सों को, अलग-अलग वर्गों को जोड़ा, आज़ादी के राष्ट्रीय संकल्प के लिए एकजुट प्रयासों को सशक्त किया। हज़ारों वर्षों से बदलती स्थितियों के बावजूद भारत के अडिग-अटल रहने में हमारी सभ्यता, हमारी संस्कृति की बड़ी भूमिका रही है।

भाइयों और बहनों,

हमारी आस्था, हमारी संस्कृति की धारा सद्भाव की है, समभाव की है, समावेश की है। इसलिए जब बुराई पर अच्छाई को स्थापित करने की बात आई तो प्रभु राम ने सक्षम होते हुए भी, खुद से सब कुछ करने का सामर्थ्‍य होने के बावजूद भी उन्‍होंने सबका साथ लेने का, सबको जोड़ने का, समाज के हर तबके के लोगों को जोड़ने का, छोटे-बड़े जीवमात्र को, उनकी मदद लेने का और सबको जोड़ करके उन्‍होंने इस काम को संपन्न किया। और यही तो है सबका साथ, सबका प्रयास। ये सबका साथ, सबका प्रयास का उत्तम प्रमाण प्रभु राम की ये जीवन लीला भी है, जिसके हनुमान जी बहुत अहम सूत्र रहे हैं। सबका प्रयास की इसी भावना से आज़ादी के अमृतकाल को हमें उज्जवल करना है, राष्ट्रीय संकल्पों की सिद्धि के लिए जुटना है।

और आज जब मोरबी में केशवानंद बापूजी की तपोभूमि पर आप सब के दर्शन का मौका मिला है। तब तो हम सौराष्ट्र में दिन में लगभग 25 बार सुनते होंगे कि अपनी यह सौराष्ट्र की धरती संत की धरती, सूरा की धरती, दाता की धरती, संत, सूरा और दाता की यह धरती हमारे काठियावाड की, गुजरात की और एक प्रकार से अपने भारत की अपनी पहचान भी है। मेरे लिए खोखरा हनुमान धाम एक निजी घर जैसी जगह है। इसके साथ मेरा संबंध मर्म और कर्म का रहा है। एक प्रेरणा का रिश्ता रहा है, बरसों पहले जब भी मोरबी आना होता था, तो यहाँ कार्यक्रम चलते रहते थे और शाम को मन होता था, चलो जरा हनुमान धाम जा आते हैं। पूज्य बापू के पास 5-15 मिनट बिताते हैं, उनके हाथ से कुछ प्रसाद लेते जाये। और जब मच्छु डेम की दुर्घटना बनी, तब तो ये हनुमान धाम अनेक गतिविधियों का केंद्र बना हुआ था। और उसके कारण मेरा स्वाभाविक रूप से बापू के साथ घनिष्ठ संबंध बना। और उन दिनों में चारो तरफ जब लोग सेवाभाव से आते थे, तब यह सब स्थान केन्द्र बन गये। जहां से मोरबी के घर-घर में मदद पहुंचाने का काम किया जाता था। एक सामान्य स्वयंसेवक होने के कारण मैं लंबे समय आपके साथ रहकर उस दुख के क्षण में आपके लिए जो कुछ किया जा रहा था, उसमें शामिल होने का मुझे मौका मिला। और उस समय पूज्य बापू के साथ जो बातें होती थी, उसमें मोरबी को भव्य बनाने की बात, ईश्वर की इच्छा थी और अपनी कसौटी हो गई ऐसा बापू कहा करते थे। और अब हमें रुकना नहीं है, सबको लग जाना है। बापू कम बोलते थे, परंतु सरल भाषा में आध्यात्मिक दृष्टि से भी मार्मिक बात करने की पूज्य बापू की विशेषता रही थी। उसके बाद भी कई बार उनके दर्शन करने का सौभाग्य मिला। और जब भूज-कच्छ में भूकंप आया, मैं ऐसा कह सकता हूँ कि मोरबी की दुर्घटना में से जो पाठ पढा था जो शिक्षण लिया था, ऐसी स्थिति में किस तरह काम चाहिए, उसका जो अनुभव था, वो भूकंप के समय काम करने में उपयोगी बना। और इसलिए मैं इस पवित्र धरती का खास ऋणी हुं, कारण जब भी बड़ी सेवा करने का मौका मिला तब मोरबी के लोग आज भी उसी सेवाभाव से काम करने की प्रेरणा देते है। और जैसे भूकंप के बाद कच्छ की रौनक बढ गई है, ऐसी आफत को अवसर में पलटने का गुजरातियों की जो ताकत है, उसको मोरबी ने भी बताया है। आज आप देखो चीनी माटी उत्पादन, टाइल्स बनाने काम, घडी बनाने का काम कहो, तो मोरबी ऐसी एक औद्योगिक गतिविधि का भी केन्द्र बन गया है। नहीं तो पहले, मच्छु डेम के चारो तरफ ईटों के भठ्ठे के सिवाय कुछ दिखाई नहीं देता था। बडी-बडी चिमनी और ईटों की भठ्ठी, आज मोरबी आन, बान और शान के साथ खडा है। और मैं तो पहले भी कहता था, कि एकतरफ मोरबी, दूसरी तरफ राजकोट और तीसरी तरफ जामनगर। जामनगर का ब्रास उद्योग, राजकोट का इंजीनियरिंग उद्योग और मोरबी का घड़ी का उद्योग कहो की सिरामिक का उद्योग कहो..इन तीनों का त्रिकोण देखते हैं तो लगता है कि हमारे यहां नय़ा मिनी जापान साकार हो रहा है। और यह बात आज मैं देख रहा हु, सौराष्ट्र के अंदर आए तो ऐसा त्रिकोण खड़ा हुआ है, और अब तो उसमें पीछे खड़ा हुआ कच्छ भी भागीदार बन गया है। इसका जितना उपयोग करेंगे, और जिस तरह मोरबी में इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास हुआ है, वह मुख्य रूप से सबके साथ जुड़ गया है। इस अर्थ में मोरबी, जामनगर, राजकोट और इस तरफ कच्छ. एक तरह से रोजगारी की नई तक पैदा करने वाला एक सामर्थ्यवान, छोटे-छोटे उद्योगों से चलता केन्द्र बनकर उभरा है। और देखते ही देखते मोरबी एक बड़े शहर का रूप लेने लगा, और मोरबी ने अपनी खुद की पहचान बना ली है। और आज दुनिया के अनेक देशों में मोरबी के प्रोडक्ट पहुंच रहे हैं। जिसके कारण मोरबी की अलग छाप बन गई है, और यह छाप धरती पर जो संतो, महंतो, महात्माओं ने कुछ न कुछ, जब सामान्य जीवन था तब भी उन्होने तप किया, हमें दिशा दी और उसका ये परिणाम है। और अपना गुजरात तो जहां देखो वहां श्रद्धा-आस्था का काम चलता ही है, दाताओं की कोई कमी नहीं, कोई भी शुभ काम लेकर निकलो तो दाताओ की लंबी लाइन देखने को मिल जाती है। और एक प्रकार से स्पर्धा हो जाती है। और आज तो काठियावाड एक प्रकार से यात्राधाम का केन्द्र बन गया है, ऐसा कह सकता हूँ, कोई जिला ऐसा बाकी नहीं है, जहां महीने में हज़ारों की मात्रा में लोग बाहर से न आते हो। और हिसाब करें तो, एक प्रकार से यात्रा कहो कि टूरिज्म को, इसने काठियावाड की एक नई ताकत खड़ी की है। अपना समुद्र किनारा भी अब गूंजने लगा है, मुझे कल नार्थ-ईस्ट के भाइयों से मिलने का मौका मिला, उत्तर-पूर्वीय राज्यों के भाइयों, सिक्किम, त्रिपुरा, मणिपुर के लोगों से मिलने का मौका मिला। वो सब थोड़े दिन पहले गुजरात आये थे, और पुत्री की शादी करने के लिये साजो-सामान में भागीदार बने, श्रीकृष्ण और रुकमणी के विवाह में रुकमणी के पक्ष से सब आये थे। और यह घटना खुद में ताकत देती है, जिस धरती पर भगवान कृष्ण का विवाह हुआ था, उस माधवपुर के मेले में पूरा नॉर्थ-ईस्ट उमड़ पडा, पूरब और पश्चिम के अद्भूत एकता का एक उदाहरण दिया। और वहां से जो लोग आये थे उनके हस्त शिल्प की जो बिक्री हुई, उसने तो नॉर्थ-ईस्ट के लिए आवक में एक बड़ा स्रोत खडा कर दिया है। और अब मुझे लगता है कि ये माधवपुर का मेला जितना गुजरात में प्रसिद्ध होगा, उससे ज्यादा पूर्व भारत में प्रसिद्ध होगा। आर्थिक गतिविधि जितनी बढती है, अपने यहां कच्छ के रण में रणोत्सव का आयोजन किया, और अब जिसको रणोत्सव जाना हो तो वाया मोरबी जाना पड़ता है। यानि की मोरबी को जाते-जाते उसका लाभ मिलता है, अपने मोरबी के हाई-वे के आस-पास अनेक होटल बन गए है। कारण कच्छ में लोगों का जमावडा हुआ, तो मोरबी को भी उसका लाभ मिला, और विकास जब होता है, और इस प्रकार मूलभूत विकास होता है, तब लंबे समय के सुखकारी का कारण बन जाता है। लंबे समय की व्यवस्था का एक भाग बन जाता है, और अब हमने गिरनार में रोप-वे बनाया, आज बुजुर्ग भी जिसने जीवन में सपना देखा हो, गिरनार ना जा सका हो, कठिन चढाई के कारण, अब रोप-वे बनाया तो सब मुझे कहते 80-90 साल के बुजुर्गो को भी उनके संतान लेकर आते है, और वे धन्यता प्राप्त करते है। पर इसके साथ-साथ श्रद्धा तो है, परंतु आवक अनेक स्त्रोत पैदा होते है। रोजगारी मिलती होती है, और भारत की इतनी बड़ी ताकत है कि हम कुछ उधार का लिये बिना भारत के टूरिज्म का विकास कर सकते हैं। उसे सही अर्थ में प्रसारित-प्रचारित करें, और उसके लिए पहली शर्त है कि सभी तीर्थ क्षेत्रों में ऐसी सफाई होनी चाहिए, कि वहां से लोगों को सफाई अपनाने का शिक्षण मिलना चाहिए। नहीं तो हमें पहले पता है कि मंदिर में प्रसाद के कारण इतनी तकलीफ होती है, और अब तो मैंने देखा है कि प्रसाद भी मंदिर में पैकिंग में मिलता है। और जब मैंने कहा प्लास्टिक का उपयोग नहीं करना तो मंदिरों में अब प्रसाद प्लास्टिक में नहीं देते, जिसमें बड़ी मात्रा में गुजरात के मंदिर प्लास्टिक में प्रसाद नहीं देते। इसका अर्थ यह हुआ कि अपने मंदिर और संतो, महंतो जैसे समाज बदलता है, संजोग बदलते हैं, और उस संजोग के हिसाब से कैसे सेवा करनी उसके लिए लगातार काम करते रहते हैं। और परिवर्तन लाते रहते हैं, हम सबका काम है कि हम सब उसमें से कुछ सीखे, अपने जीवन में उतारे, और अपने जीवन के अंदर सबसे ज्यादा लाभ लें। आजादी के अमृत महोत्सव का समय है, अनेक महापुरुषों ने देश की आजादी के लिए बलिदान दिया है। परंतु उससे पहले एक बात ध्यान रखना चाहिए, कि 1857 के पहले आजादी की जो पूरी पृष्ठभूमि तैयार की, जिस आध्यात्मिक चेतना का वातावरण खड़ा किया। इस देश के संतो, महंतो, ऋषि-मुनियों, भक्तों ने, आचार्यो ने और जो भक्ति युग का प्रारंभ हुआ, उस भक्ति युग ने भारत की चेतना को प्रज्ज्वलित किया। और उससे आजादी के आंदोलन को एक नई ताकत मिली, अपने यहां संत शक्ति, सांस्कृतिक विरासत, उसका एक सामर्थ्य रहा है, जिन्होंने हमेशा सर्वजन हिताय, सर्वन सुखाय, सर्वजन कल्याण के लिए समाज जीवन में कुछ न कुछ काम किया है, और इसके लिए तो हनुमान जी को याद रखने का मतलब ही सेवाभाव-समर्पणभाव । हनुमानजी ने तो यहीं सिखाया है, हनुमानजी की भक्ति सेवापूर्ति के रूप में थी। हनुमानजी की भक्ति समर्पण के रुप में थी। मात्र कर्मकांड वाली भक्ति हनुमानजी ने कभी नहीं किया, हनुमानजी ने खुद को मिटाकर, साहस कर, पराक्रम कर खुद की सेवा की उंचाइओ को बढाते गये। आज भी जब आजादी के 75 वर्ष मना रहे हैं तब हमारे अन्दर का सेवाभाव जितना प्रबल बनेगा, जितना परोपकारी बनेगा, जितना समाज जीवन को जोड़ने वाला बनेगा। ये राष्ट्र ज्यादा से ज्यादा सशक्त बनेगा, और आज अब भारत ऐसे का ऐसे रहे, ये जरा भी नहीं चलेगा, और अब हम जागते रहें या सोते रहें पर आगे बढ़े बिना छुटकारा नहीं है, दुनिया की स्थिति ऐसी बनी है, आज सारी दुनिया कहने लगी है कि आत्मनिर्भर बनना होगा। अब जब संतों के बीच में बैठा हुं, तब हम लोगों को नहीं सिखाए, लोकल के लिए वोकल बनो, वोकल फॉर लोकल ये बात लगातार कहनी चाहिए कि नहीं। अपने देश में बनी, अपने लोगों द्वारा बनाई गई, अपने मेहनत से तैयार की हुई चीज ही घर में उपयोग करें, ऐसा जो वातावरण बनेगा, आप सोचिए कितने सारे लोगों को रोजगार मिलेगा। बाहर से लाने में अच्छा लगता है, कुछ 19-20 का फर्क हो, पर भारत के लोगों ने बनाया हो, भारत के पैसे से बना हो, भारत के पसीने की उसमें महक हो, भारत के धरती की महक हो, तो उसका गौरव और उसका आनंद अलग ही होता है। और उससे अपने संतो-महंतो जहां जाये वहां भारत में बनी हुई चीज़ें खरीदने के आग्रही बने। तो भी हिन्दुस्तान के अंदर रोजी-रोटी के लिए किसी प्रकार की तकलीफ ना हो ऐसे दिन सामने आ जाये, और जब हम हनुमानजी की प्रशंसा करते हैं कि हनुमानजी ने ये किया, वो किया। लेकिन हनुमानजी ने क्य़ा कहा वहीं हमारे जीवन के अंदर की प्रेरणा है। हनुमानजी हमेशा कहते हैं-

''सो सब तब प्रताप रघुराई, नाथ न कछू मोरि प्रभुताई'',यानी अपने हर काम अपनी हर सफलता का श्रेय हमेशा उन्‍होंने प्रभु राम को दिया, उन्‍होंने कभी ये नहीं कहा कि मेरे कारण हुआ है। जो कुछ भी हुआ है प्रभु राम के कारण हुआ है। आज भी हिन्‍दुस्‍तान जहां भी पहुंचा है, आगे जहां भी संकल्‍प करना चाहता है, उसका एक ही रास्‍ता है, हम सभी भारत के नागरिक....और वही शक्ति है। मेरे लिए तो 130 करोड़ मेरे देशवासी, वही राम का स्‍वरूप हैं। उन्‍हीं के संकल्‍प से देश आगे बढ़ रहा है। उन्‍हीं के आशीर्वाद से देश आगे बढ़ रहा है। उस भाव को ले करके हम चलें, इसी भाव के साथ मैं फिर एक बार इस शुभ अवसर पर आप सबको अनेक-अनेक शुभकामनाएं देता हूं। हनुमान जी के श्री चरणों में प्रणाम करता हूं।

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

डिस्क्लेमर: प्रधानमंत्री के संबोधन के बीच उनके गुजराती भाषा में किये गए उद्बोधन का यहाँ भावानुवाद किया गया है, मूल भाषण हिंदी और गुजराती भाषा में हैं।

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DS/LP/ST/NS



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