10/21/2024 | Press release | Distributed by Public on 10/21/2024 06:28
PM's address at the launch of 'Karmayogi Saptah' - National Learning Week
PM's address at the launch of 'Karmayogi Saptah' - National Learning Week
नमस्कार साथियों,
मंत्रिमंडल में मेरे सहयोगी श्रीमान जितेंद्र सिंह जी, कपैसिटी बिल्डिंग कमीशन के चेयरमैन, विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के ऑफीसर्स, अन्य महानुभाव, और देशभर से जुड़े, भारत सरकार के सभी कर्मचारीगण, देवियों और सज्जनों,
मिशन कर्मयोगी में आज हम एक और अहम पड़ाव पर पहुंचे हैं। दीवाली दरवाजे खटखटाती हो, बड़ी मुश्किल से आखिर ये Saturday Sunday मिला हो और उसमें भी ये मुसीबत झेलनी पड़े, फिर भी सब लोग हसते चेहरे से बैठे हों, तो मुझे लगता है कि कर्मयोगी मिशन अब तक तो सफल हुआ है।
साथियों,
National Learning Week में आप सभी का अभिनंदन भी है और एक शुभ प्रयास भी है। 4 वर्ष पहले जब हम सबने मिलकर के मिशन कर्मयोगी लॉन्च किया था, तो उसमें नए भारत के निर्माण की आकांक्षा थी, एक नया विज़न भी था और हम सबके लिए एक मिशन भी था। हमारा लक्ष्य था- हमें सरकार में एक ऐसा human resource pool तैयार करना है, जो देश के विकास का driving force हो! एक ऐसा human resource पूल, जो कर्तव्य भाव से, और ज्यादा passion के साथ काम करे! लाखों लोगों की ऐसी शक्ति, जो देश के सपनों को समझे, उन्हें गढ़े भी और पूरा भी करे। आज 4 साल बाद देश के लाखों सरकारी कर्मचारियों को उस विज़न से जुड़ते देखना, इस दिशा में आपके ये गंभीर प्रयास, आप कल्पना कर सकते हैं कि मैं कितना संतोष का अनुभव करता हूं। और कभी -कभी मेरे लिए एक सवाल पूछा जाता है। क्या आप थकते नहीं हैं? जब ऐसा संतोष मिलता हो तो थकान प्रवेश नहीं कर सकती दोस्तों। किसी भी देश के सरकारी कर्मचारी जब इस जज़्बे से काम करने लगते हैं, तो उस देश की प्रगति को कोई नहीं रोक सकता। आज मिशन कर्मयोगी, कपैसिटी बिल्डिंग कमीशन, और नेशनल लर्निंग वीक जैसे आयोजन इस दिशा में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। मुझे आशा है, इस एक सप्ताह में आप जो नया सीखेंगे, जो नए अनुभव यहाँ मिलेंगे, उनसे देश में और बेहतर कार्यप्रणाली को बल मिलेगा। य़े बेहतर कार्यप्रणाली ही हमें 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य को पार करने की शक्ति बनेगा।
साथियों,
आप सब जानते हैं आजादी के समय बहुत लोगों को एक बहुत बड़ी चिंता थी। चिंता ये कि अंग्रेजी हुकूमत द्वारा अपने हितों के लिए बनाई गई व्यवस्था, क्या आज़ाद भारत का हित कर पाएगी? दुर्भाग्य से, आजादी के बाद का भारत, अंग्रेजी ब्यूरोक्रेसी के उन दबावों से उतनी तेजी से बाहर नहीं निकल पाया। इस कठोर सत्य को हमें स्वीकार करना होगा। लेकिन अब हमें तेजी से उन बंधनों से मुक्ति पानी है, हमें अपना राह खुद चुनना है। प्रशासन की जनता से दूरी, उसकी तकलीफों से दूरी,पद, पावर, प्रतिष्ठा का भाव, इस सबने पूरी व्यवस्था में कर्तव्यों की priority को dilute कर दिया! और इसमें दोष व्यक्तियों का नहीं है, आपमें से बैठे हुए किसी का नहीं है। 75 साल इस प्रोसेस से निकले हुए इस काम को चलाने वाले लोगों का भी मैं दोष नहीं मानता हूं। लेकिन एक बनी बनाई व्यवस्था थी, एक सिस्टम बन चुका था, जिसने हमें जकड़ कर रखा था। इसीलिए, पिछले 10 वर्षों में हमने top to bottom, सरकार के mind-set में एक complete change की शुरुआत की। हम 'कर्तव्य' को केंद्र में लेकर आए। अपने कर्तव्यों का बोध, और गुलामी की मानसिकता से मुक्ति, एक के बाद एक, भारत ने ऐसे निर्णय लिए, ऐसी नीतियाँ बनाईं, जिनसे सिस्टम की जवाबदेही बढ़े! इसके लिए हमने नए तौर-तरीकों को अपनाया। हमने नए इनोवेशन्स से उनका प्रभावी implementation सुनिश्चित किया। और, आज करोड़ों देशवासी इस बदलाव को अनुभव कर रहे हैं। ये संभव हुआ, आपके सहयोग और आपकी सक्रिय भागीदारी से! ये संभव हुआ, मिशन कर्मयोगी जैसे initiatives की सफलता से! इसे और अधिक productive बनाने के लिए आज कर्मयोगी कॉम्पीटेंसी Model भी लॉंन्च हुआ है। मैं चाहूँगा, आप इस एक सप्ताह के प्रोग्राम से न केवल सीखें, बल्कि अपने अनुभव साझा भी करें। आपके जो सुझाव हों, जो feedback हो, उसे भी शेयर करें।
साथियों,
विकसित भारत के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए 'whole of Government' अप्रोच के साथ काम किया जाना बहुत जरूरी है। जब सरकार के अलग-अलग मंत्रालयों का, कर्मचारियों का लक्ष्य एक ही होगा, तो लक्ष्य पाना भी उतना ही आसान होगा। इसके लिए कर्मचारियों की structured training आवश्यक है। एक ऐसी ट्रेनिंग- जिसे 'whole of Government' अप्रोच के साथ डिजाइन किया गया हो! और इसीलिए ही, 2020 में मिशन कर्मयोगी के तहत iGoT को लॉन्च किया गया था। Capacity Building Commission की स्थापना की गई थी। कहीं भी, कभी भी सीखने की इस सुविधा ने मंत्रालयों और विभागों में silos को खत्म किया है, या तो खत्म करने की शुरूआत हुई है। मुझे खुशी है कि iGOT के तहत जो मुझे बताया गया, 40 लाख से ज्यादा सरकारी कर्मचारियों ने अपना रजिस्ट्रेशन करवाया है। और ये कोई compulsion नहीं है। ये स्वंय प्रेरणा से एक environment create हुआ है। और इसमें 1400 से ज्यादा iGOT पर कोर्सेस उपलब्ध हैं, 1400 । मुझे खुशी है कि सरकारी कर्मचारियों ने लगभग डेढ़ करोड़ course सर्टिफिकेट हासिल किए हैं।
साथियों,
एक समय था, हमारे देश में Civil Service Training Institutions भी silos का शिकार थे। उनमें आपस में कोई समन्वय नहीं होता था। कोई एक नियम नही., एक standard नहीं! हमने इन Training Institutions के लिए भी standards तय किए हैं। उनके बीच collaboration और partnership को बढ़ावा देने के प्रयास किए जा रहे हैं। आज यहाँ इस कार्यक्रम में, देश के कई ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट्स की कमान संभाल रहे लोग भी एक साथ जुड़े हैं। मैं उनसे भी कहूँगा, आप आपस में संवाद के proper formal channels establish करिए। एक इंस्टीट्यूट अगर कोई नई पहल कर रहा है, कोई नया idea implement कर रहा है, तो दूसरे इंस्टीट्यूट्स को भी उसकी जानकारी होनी चाहिए। एक दूसरे से सीखना, अपनी जरूरतों के हिसाब से नए ideas को adopt करना, ये हमारी कार्यशैली का हिस्सा होना चाहिए। यही नहीं, दुनिया के दूसरे देशों में भी अगर कोई बेहतर प्रैक्टिस हो रही है, तो उस पर भी हमारे यहाँ चर्चा होनी चाहिए, उसे अपनाना चाहिए।
साथियों,
आज किसी भी क्षेत्र में काम कर रहे लोगों के लिए ट्रेनिंग का एक बड़ा माध्यम टेक्नालजी है। हमें टेक्नालजी की भी ट्रेनिंग लेनी है, और टेक्नालजी के जरिए भी ट्रेनिंग लेनी है। आप देखिए, पिछले 10 वर्षों में सरकार ने कितनी जटिल समझी जाने वाली समस्याओं के समाधान टेक्नालजी के जरिए दिये हैं। DBT, JAM जैसे कितने ही इसके उदाहरण हैं। ऐसे में जब हमारे सरकारी अधिकारी और कर्मचारी technology में trained होते हैं, तो इन प्रयासों के परिणाम ज्यादा तेजी से मिलते हैं। हमें ये समझना होगा कि आज जो emerging technologies हैं, कल वो सामान्य जीवन का हिस्सा होंगी। आप अभी भलिभांति इस चीजों से aware रहें, कैसे उनका इस्तेमाल करके आप अपने कार्यक्षेत्र में व्यवस्थाओं को बेहतर बना सकते हैं, आप को इस पर भी काम करना चाहिए।
अब आप सब देख रहे हैं। डिजिटल revolution और सोशल मीडिया के चलते आज information equality एक norm बन चुकी है। अब AI के चलते information processing भी उतनी ही आसान होने जा रही है। यानी, ऐसी कोई जानकारी नहीं, जो सामान्य मानवी की पहुँच से, उसकी समझ से बाहर हो। सामान्य से सामान्य नागरिक भी आपके हर काम पर पैनी नजर रख सकता है। आने वाले समय में हर professional के लिए स्वयं को कठिन कसौटी पर साबित करना होगा। Authority और protocol, इनकी शील्ड से बाहर निकलकर आपको अपने काम के जरिए अपनी प्रासंगिकता सिद्ध करनी ही पड़ेगी। इसलिए, आप टेक्नालजी को अपनाएं, ये केवल देश की जरूरत है ऐसा नहीं है, अपने आपको professional बनाने के लिए भी जरूरी है। एक professional के तौर पर ये आपके करियर के लिए भी जरूरी है। यही समय है, आप स्वयं को upgrade करें। आप अपने काम के तौर तरीकों को, interaction और execution को upgrade करें। हर लोक-सेवक को 21वीं सदी की जरूरतों के मुताबिक capacity building करनी होगी। और इसमें मिशन कर्मयोगी जैसे प्लैटफ़ार्म से भारत सरकार के हर कर्मचारी को बहुत मदद मिलेगी।
साथियों,
एक समय था, जब सरकारी विभागों के नियम और प्रक्रियाएं अधिकारियों, कर्मचारियों की सहूलियत को ध्यान में रखकर बनाई जाती थीं। जबकि, लोकतन्त्र में हर विभाग का एक ही उद्देश्य है- नागरिकों की सुविधा और सेवा! इसीलिए, आज सरकार की प्राथमिकता है- citizen-centric approach. यही आपके काम का भी पहला पैरामीटर होना चाहिए। आम लोगों का सरकारी व्यवस्था में भरोसा बढ़े, ये हम सबकी ज़िम्मेदारी है। इसके लिए हम जितना लोगों से कनेक्ट करेंगे, उतना हमारी कार्यशैली भी productive बनेगी। अपने-अपने डिपार्टमेंट में आपको फीडबैक mechanism बनाने पर भी विचार करना चाहिए। आपके ऑफिस में लगे suggestion box को गंभीरता से लिया जाए, जरूरी जानकारियाँ नोटिस बोर्ड पर उपलब्ध हों,ये सारी बातें बहुत जरूरी है। आपको अपने विभागों में innovative thinking और solutions को प्रमोट करना चाहिए। ये जरूरी नहीं है कि नए ideas के लिए आप केवल सरकारी दायरों में ही सीमित रहें। गवर्नेंस में नए आइडियाज के लिए आप research institutions की, स्टार्टअप्स और youngsters की मदद भी ले सकते हैं। लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि consultancy एजंसियों को book कराकर के गाड़ी चलाना। इसका मतलब ये नहीं है कि department को outsource कर देना। आप और आपकी टीम नए skill develop करे, इस पर फोकस और बढ़ाएं। Human resource का efficient management कैसे हो, इस पर भी ज्यादा काम करने की जरूरत है।
साथियों,
आपके ऊपर केवल व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने की ही ज़िम्मेदारी नहीं है! आपको जनता का विश्वास भी जीतना है। पहले सरकारों की पहचान policy paralysis से थी। और, सरकारी विभाग, सरकारी अधिकारी, ये फ़ाइलों के फंदे के लिए जाने जाते थे। फाइल घूम रही होगी, फाइल लटकी होगी, फाइल अटकी होगी, फाइल उस अफसर के यहां दबी हुई है, आम लोगों में ब्यूरोक्रेसी की यही एक definition हुआ करती थी। अब समय है, आपको इस लीगेसी को बदलना होगा। ब्यूरोक्रेसी के प्रति जनता की धारणा बदलने के लिए हमें फाइलों से बाहर निकलना होगा। इसलिए मैं कहता हूं, कि फाइलों से अलग भी एक लाइफ होती है।
और साथियों,
कहीं इन फाइलों के ढेर लाइफ को दबोच न दे, लाइफ पर फाइलों के ढेर का दबाव न हो, लाइफ फाइलों के नीचे दम तोड़ दे, मैं समझता हूं कि लोकतंत्र का सार्थक प्रयास नहीं हो रहा है। इसलिए मैं चाहूँगा, National Learning Week में हर अधिकारी खुद के लिए एक टार्गेट तय करे, वो जनता की समस्याओं से जुड़े कितने काम फाइलों के चक्कर के बिना, वो सारी परिभ्रमण से बाहर निकलकर के उसको निपटा सकते हैं। जैसे हम इस समय सरकार में पेपरलेस ऑफिस को बढ़ावा दे रहे हैं, वैसे ही आप least file system को बढ़ावा दीजिये। हमारे इस अभियान में सभी मंत्रालयों और विभागों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है।
साथियों,
आप जानते हैं,आज गाँव-गरीब, किसान-मजदूर, महिला-युवा दलित-पिछड़ा और आदिवासी, ये देश की पहली प्राथमिकता हैं। ये सभी वर्ग तभी आगे बढ़ेंगे, जब हम अपने क्षेत्र में, अपने विभाग में इनकी समस्याओं के समाधान निकालेंगे। इसलिए, आप जिस पॉलिसी या प्रोग्राम के साथ जुड़कर काम कर रहे हैं, उसे समावेशी बनाएं, Inclusive बनाएं। आपके काम से इन वर्गों के जीवन में कितना अंतर आ रहा है, आप सबसे पहले खुद ही इसका आकलन करें।
साथियों,
लोग संकट के समय सबसे ज्यादा सरकार की जरूरत महसूस करते हैं। प्राकृतिक आपदा जैसी परिस्थितियाँ कभी भी चुनौती खड़ी कर सकती हैं।कोविड का समय गुजरे अभी कुछ ही साल हुये हैं! आप सबने अनुभव किया होगा, आपदा से निपटने में आपदा के समय की तैयारियां उतनी प्रभावी नहीं होतीं! जितना हम पहले से prepared होते हैं, उतना हम नुकसान को कम कर पाते हैं। आज कोस्टल इलाकों में तूफान जैसे हालातों में लगातार ये साबित हो रहा रहा है। Readiness, ये भारत के disaster management की सबसे बड़ी ताकत आज बनता जा रहा है। आपको भी अपने क्षेत्रों में हमेशा आपदा की किसी भी स्थिति के लिए तैयार रहना होगा। इमरजेंसी की स्थिति के लिए हमें resilient response system तैयार करने पर ध्यान देना चाहिए।
साथियों,
समय के साथ परिस्थितियाँ बदलेंगी, चुनौतियाँ बदलेंगी। लेकिन, आपकी सर्विस में जो चीज हमेशा पैरामाउंट रहेगी, वो है- आपका सेवाभाव, आपकी कर्तव्य-निष्ठा! यही आपकी सबसे बड़ी ताकत हैं। इस कार्यक्रम में सरकार की नीतियां आपको दिशा दिखाएंगी, लेकिन इसे धरातल पर उतारने की शक्ति आपको मिशन कर्मयोगी से मिलेगी। ये मिशन आपमें जिम्मेदारी की भावना पैदा करेगी। मुझे भरोसा है, कुछ नया करने की अपनी सोच से आप देश के लिए एक लीगेसी जरूर बनाकर जाएंगे। आपका हर प्रयास, भारत को विकसित होने में मदद करेगा।
और साथियों,
जब हम इतना बड़ा मिशन लेकर चल रहे हैं। अब जैसे learning beach है, कभी इस प्रकार के एक संगठित प्रयास ज्यादा उपकारक होते हैं। मैं अपना एक अनुभव जरूर शेयर करूंगा आपको। मैं जब गुजरात में था तो मैं एक regular कार्यक्रम चला था - वांचे गुजरात। वांचे मतलब किताब पढ़ना। क्योंकि आजकल ज्यादातर हमारी नई जनरेशन किताब से दूर और गूगल गुरू के चरणों में ही शिक्षा ले रही है। तो उसको इससे जोड़ना जरूरी था। तो मैं एक अभियान चलाता था वांचे गुजरात। और वो इतनी प्रतिष्ठा मिल गई थी उसको, आप यानि किसी को भी सुन कर आश्चर्य होगा। गुजरात के किसी भी गांव की कोई भी पब्लिक लाईब्रेरी, स्कूल कॉलेज की लाईब्रेरी, एक भी किताब वहां मौजूद नहीं होती थी। इतनी उसकी मांग बढ़ जाती थी। इतना ही नहीं, मैं Chief Minister था, तो भी मुझे कभी-कभी Guardians मेरा contact करते थे की कोई सोर्स हो, मेरे बच्चे को पढ़ने के लिए 4 किताब कहीं से मिले देखों ना। यानि पब्लिक में इतना बड़ा momentum होता था, और मैं देखता था कुछ बच्चें उस कार्यक्रम के दरमियान, 30 दिन चलता था कार्यक्रम। 30-30, 40-40 किताबें पढ़ी होती थी। ये यानि पागलपन छा जाता था। और सिर्फ किताबें यानि रट ली या पढ़ ली ऐसा नहीं। बाद में उसका Viva होता था, पूछा जाता था, तुमने 30 किताबें पढ़ी बताओ भई। और उसमें भी वो बच्चें बाहर निकलकर के आते थे। और लाईब्रेरी की साफ-सफाई होती थी वो तो हमारा स्वच्छता का कार्यक्रम हो ही जाता था। लेकिन अपने आप में एक बहुत बड़ा, मैं स्वंय भी उन दिनों कुछ समय लाईब्रेरी में जाकर के पढ़ता था। ताकि एक मेरा भी उन सबसे जुड़ाव है।
मेरा कहना है कि लर्निंग वीक के साथ विभाग अपना डिपार्टमेंट जो भी हो, या एक कमरे में जितने लोग बैठते हों, पांच लोग हो गए, सात लोग हो गए, क्या आप भी अपने उस viva की तरह ये learning experience को शेयर कर सकते हैं एक आद घंटा निकालकर के चर्चा, और तीन चार दिन हर व्यक्ति अपने सात दिन का अनुभव 30-40 मिनट में detail में बताएगा की मैंने ये ये चीजें देखीं, ये ये चीज सीखा, ये तब फायदा होगा। सिर्फ आप उसका करकर के छोड़ देंगे तब फायदा नहीं होगा। बहुत सी बातें ऐसी होती हैं कि विचार जब सामुहिकता की कसौटी से कसा जाता है, तो विचार कभी-कभी मंत्र बन जाता है। और इसलिए विचार को हमनें कसना चाहिए, बाल की खाल उधेड़ लेनी चाहिए। इसमें क्या था, क्यों था, क्या जरूरत थी। खुले मन से चर्चा होनी चाहिए। उसमें से जो अर्क निकलेगा ना, वो जड़ीबूटी बन जाता है साथियों। वो हमारी व्यवस्था की एक बहुत बड़ी औषधी बन जाता है। और ये हमारा प्रयास रहना चाहिए। उसी प्रकार से आखिरकार ये जब इसकी कल्पना मेरे मन में चल रही थी कि भई यहां बदलाव की बहुत जरूरत है।
ये सही है कि सरकर में ट्रेनिंग का मतलब होता है उसको उस विषय का नॉलेज हो, जिस डिपार्टमेंट में काम करता है। उसे फाइल की गतिविधियों का अता पता हो। Subject का drafting, noting इसकी विषय में ज्ञान हो। उसके rules regulations उसका ज्ञान हो। मैं समझता हूं ये अनिवार्य है उसके बिना तो गाड़ी चलेगी नहीं। लेकिन ये बहुत अधूरा है। जब तक purpose of life, purpose of mission, purpose of service, ये हमारी रगों में, हमारी जहन में, हमारी thought process के केंद्र में नहीं होगा, तो करियर के लिए किए गए काम करियर तो बना देंगे लेकिन लीगेसी नहीं छोड़ पाऐंगे। और इसलिए आवश्यकता है कि जो भी हमारा कर्मयोगी मिशन है उसमें purpose of life, आखिर मैं क्यों आया हूं जी? क्या दो टाइम रोटी खाने के लिए इतनी बड़ी व्यवस्था का मैं हिस्सा बना हूं नहीं, हमें बदलाव लाना होगा।
मैं जानता हूं साथियों आपमें से वो बहुत लोग हैं शायद रिटायरमेंट की तैयारी में लगे होंगे, पांच साल, कोइ दस साल, गिनते होंगे। लेकिन उन पिछले दिनों देखें तो हमारी सरकारें चलाने का तरीका क्या था? और वो गलत था ऐसा मैं नहीं कह रहा हूं। लेकिन तरीका ये था कि भई 2011 में किया, 2012 में उसी तरह ज्यादा करेंगे। 2012 में किया, 2013 में और ज्यादा करेंगे। पहले इतना किया अब जरा इतना बढ़ेंगे। मैं समझता हूं कि 75 साल की यात्रा में बीते हुए कल को मानकर के चलना शायद आवश्यक भी होगा, मजबूरी भी होगी, कठिनाईयां भी होगीं, लेकिन अब हमें बीते हुए दिनों के संदर्भ में नहीं बढ़ना है। अब हमें 2047 कहां पहुंचे, अब कितना बाकी है, कितना जल्दी जाना है, बीती हुई कल नहीं, आने वाली कल को लक्ष्य लेकर के अपने टारगेट तय करने चहिए। ये बहुत बड़ा paradigm shift है जी। बीते हुए कल के सहारे गुजारा करने के वो दिन थे। शायद मैं भी होता तो मुझे उस दिशा में चलना पड़ता। लेकिन अब हम उसे बाहर निकल चुके हैं और अब और ताकत लगानी है, कि नहीं अगर 75 साल में यहां पहुंचा हूं, 2047 तक इसी गति से मैं चला तो मेरा देश विकसित भारत नहीं बन सकता है। मुझे तो 2047 की ये टारगेट है, इन 365 दिन में मुझे ये काम करना पड़ेगा, अगर 365 दिन में ये काम करना है तो मेरे पास जो 50-48-40 वीक जो वर्किंग वीक मिले हैं। मुझे इतना काम करना होगा, मतलब मुझे एक दिन में इतना काम खीचना पड़ेगा, मतलब की मेरा एक-एक घंटा 2047 की गति को ताकत देने वाला बने, ये मेरे दिमाग में समय चक्र चलना चाहिए। बीते हुए कल के सहारे नहीं जीना है दोस्तों। जो लक्ष्य और जो सपना लेकर के चलता है ना वो उस दिशा में चलता है।
साथियों,
मैं जानता हूं iGOT information का खजाना है। और आपको जो चाहिए वो information है। ऐसा नहीं है कि इधर उधर से बहुत खोज खाज के निकालने पड़े। एक प्रकार से नॉलेज का पूल है। लेकिन क्या साथियों, विषय का ज्ञान होने से हम सचमुच में कर्मयोगी हो सकते हैं क्या?ज्ञान की कमी शायद हमारे शास्त्रों से पढ़ते आए हैं हम, कोई कमी नहीं रही हमारे देश में। लेकिन महाभारत से एक सबक है जी, महाभारत में कहा गया है, और मैं समझता हूं वो सबसे बड़ा एक turning point था। जानामि धर्मं न च मे प्रवृत्तिः । मैं धर्म को जानता हूं लेकिन मेरी वो प्रवृत्ति नहीं है और प्रवृत्ति नहीं है वही तो युद्ध को जन्म दे देती है । पूरी यात्रा उसी से आगे राह बदल जाती है, और जो युद्ध तक पहुंच जाती है विनाश तक पहुंच जाती है। अगर मुझे कर्मयोगी के नाते iGOT के प्लेटफॉर्म से नॉलेज मिलता है। जानामि धर्मं, मुझे पता है क्या है, क्या नहीं करना है, कैसे करना है, नियम क्या है, सब मालूम है। लेकिन मेरी वो प्रवृत्ति नहीं है, तो ये ज्ञान निरर्थक है दोस्तों, और इसलिए हमें प्रवृत्ति बनाना होगा और प्रवृत्ति तब बनती है, जब वृत्ति से ट्राई होती है, और जो चीज वृत्ति से ट्राई होती है उसको प्रवृत्ति में पलटने से देर नहीं लगती है। क्या मेरी ये वृत्ति बन रही है, ये मेरा पेशन बन रहा है। तब जाकर मैं iGOT से जब जुड़ता हूं, तो मेरे दिमाग में कोर्स नहीं है, मेरे दिमाग में सर्टिफिकेट कब मिलेगा, कितने घंटे ये कंप्यूटर पर माथा पच्ची करनी पड़ेगी, यार ये जल्दी पूरा हो जाए, मार्क्स आ जाए, मैं निकल जाऊं, तो मित्रों हो सकता है कि मैं बहुत सारे सर्टिफिकेट्स का ढ़ेर इकट्ठा कर लूंगा। मेरे बच्चों की ऊंचाई से भी ज्यादा वो सर्टिफिकेट का ढेर हो जाएगा। लेकिन उन ढेर बच्चों को खड़ा कर दिया तो बच्चा बड़ा नहीं बनेगा दोस्तों। बच्चा पढ़ाने के लिए मेहनत करनी पड़ती है, तब जाकर के बनता है। हमें कोशिश वो करनी होगी।
मैं नहीं जानता हूं iGOT प्लेटफॉर्म और क्या चीजें हैं। लेकिन कुछ अगर iGOT में सोचा जाए कुछ चीजों पर, जैसे आप देखते हैं कि आजकल सोशल मीडिया और इतना बड़ा नॉलेज शहरी की दुनिया है तो executive diet chart होता है आज का, और बहुत लोग उसको फोलो करते हैं। कि अगर club में जब मिलते हैं शाम को जरा पार्टियों में तो एक चर्चा जरूर करते हैं । मैं फलाना executive plan को follow करता हूं। और फिर dining table पर तोड़ देता है, लेकिन चर्चा में जरूर कहता है। कि मैं फलाने executive diet chart! क्या iGOT ने जो हमारे साथियो को वो भी मदद करें, कि भई आपकी ये जिम्मेदारी है, तुम ड्राईवर हो तो तेरे लिए ये diet chart बहुत जरूरी है। वो भी देखे, पढ़े उसको लगे हां यार iGOT पर जाऊंगा तो काम हो जाएगा। तुम uniformed service में हो, तनाव से जिंदगी गुजारनी पड़ती है हर moment कहीं से तो ये मेसेज आएगा अलर्ट, दौड़ना पड़ता है। तो तेरा diet chart वो नहीं चलेगा, Principal Secretary का होता है। Diet chart अलग होगा। यानि क्या हम ऐसी कोई व्यवस्था उस पर खड़ी कर सकते हैं।
उसी प्रकार से हम yoga in general ठीक हैं करें, करते भी होंगे कुछ, और कुछ लोग उसकी चर्चा भी करते होंगे। लेकिन कोई उससे अछूता नहीं रहता है क्योंकि आजकल वो center point में है, चर्चा में है। लेकिन क्या ऑफिस में ही, अगर आप कंप्यूटर ऑपरेटर हैं तो इस प्रकार का तो एक professional hazard होता है। Professionally आपको कुछ शारीरिक तकलीफ आनी ही आनी है। तो आप अपनी चेयर पर बैठे-बैठे, जैसे आप हवाई जहाज में यात्रा करते हैं, और लंबी यात्रा होती है तो वो आपको instruction करता है थोड़ा पैर हिलाओ, जरा ऊंचा-नीचा करो, थोड़ा ये करो, बताते हैं। क्या हम भी iGOT पर उनको educate कर सकते हैं। कि भई तुम्हारी नौकरी इस प्रकार की है। तुम इस प्रकार के चेयर पर बैठते हो। चेयर पर बैठे-बैठे पांच मिनट तुम ऐसे निकालो। हो सकता है कि धीरे-धीरे उस कमरे में बैठे हुए वो सब लोग साथ कर सकते हैं। तो उसमें से एक सामूहिकता और दूसरा स्वास्थ का सामूहिकता की ताकत बहुत बड़ी होती है।
आप आमतौर पर घर में मां या पत्नी कितना ही बढ़िया खाना बनाती हो, और आप खाना खा रहे हैं, ऑफिस जाने का टाइम है या नहीं है, जो भी शाम को आए, वो परोसती है, तो लेकिन फिर भी आप नहीं जी बहुत हो गया, नहीं-नहीं, नहीं-नहीं ऐसा करते हैं। बहुत दो रोटी खाते हैं। दो ही से मन भर जाता है, पेट भी भर जाता है। लेकिन ऐसे ही चार यार दोस्त बैठे हैं टेबल पर, कोई परोसने वाला नहीं है, कोई आग्रह करने वाला नहीं है, लेकिन आपको पता भी नहीं होगा दो की बजाय चार रोटी कब चली गई, पता तक नहीं चलता है, सामूहिकता की ये ताकत होती है। और इसलिए ये आपके learning experience के साथ कुछ सामूहिकता जुड़ना बहुत जरूरी है। और जिस कमरे में 5-7-10 अफसर बैठते हैं, 20 अफसर बैठते हैं उनके बीच में इस iGOT को लेकर के कोई सामूहिक इवेंट प्रतिदिन 5 मिनट, 10 मिनट या सप्ताह में एक दिन कुछ तो भी हम प्लान कर सकते हैं, हम सोचें।
दूसरा हम हर साथी को उसके choice के अनुसार iGOT पर जो कोर्स करना है करे, करे। लेकिन हर विभाग या उस जो कोई भी छोटी सी एक यूनिट का जो Joint Secretary होगा, Director होगा, उसके साथ में अगर 20-25 लोग काम करते हैं, या मान लीजिए पूरे में 50 लोग काम कर रहे हैं। तय करें की भई नवंबर महीने के 1st week में हम सब यही कोर्स करेंगे! 2nd week में यही कोर्स करेंगे। उसे निश्चित करिये। बाकि जो 10 कोर्स करने हैं। ये तो करेंगे ही करेंगे। और फिर जो सामूहिक रूप से तय किया गया कोर्स उसकी सामूहिक चर्चा करेंगे। देखिए आपने सटिर्फिकेट पाने के लिए किया हुआ कोर्स और तय किये हुए विषय की वही कोर्स और फिर उसकी चर्चा आपकी व्यवस्था में परिवर्तन का कारण बनेगी। और इसिलए मैं चाहता हूं इस learning modules में बहुत सी नई चीजों को जोड़ने की आवश्यकता है।
मुझे एक हमारे नौजवान मित्र ने बहुत बढ़िया बात बताई, और मुझे अच्छी लगी तो मैं जरूर आपको भी कहना चाहूंगा, उसने कहा कि हमारे यहां एक कॉमन वर्ड है सरकारी मशीनरी। अब यूं आदत हो गई है, हम यूं बोलते हैं भई सरकारी मशीनरी, सरकारी मशीनरी, सामान्य मानवी बोलता है सरकारी मशीनरी। अरे भई तुझे मालूम है जब मशीनरी है तो overhauling जरूरी है कि नहीं है, साफ सफाई जरूरी है की नहीं है, upgrade करना जरूरी है कि नहीं है। इतना ही नहीं कितना ही अपडेट रखिये मशीन को, कितना ही साफ सुथरा रखिये, लेकिन जब तक उसमें lubricating व्यवस्था नहीं है, वो चलना नहीं है। बहुत सारे डिपार्टमेंट इसलिए जकड़कर के बैठ गए हैं कि उनके बीच में कोई lubricating व्यवस्था नहीं है, और lubricating व्यवस्था के लिए उस विभाग का एक elder person हो, वो जरा संभाले कभी हाथ कंधे पर रखकर पूछे अरे क्यों भई कुछ उदास नजर आ रहे हो, क्या भई शाम को जल्दी जाना है, बेटे का जन्मदिन है, अरे जाओ भई जल्दी जाओ, कल काम कर लेंगे, मैं तेरा काम कर लूंगा, तुम जाओ। ये lubrication होता है दोस्तों। सरकारी व्यवस्था निर्जीव नहीं हो सकती। ये मुर्दों का ढेर नहीं है दोस्तों, ये 140 करोड़ सपनों को जीने वाला जिंदादिल समूह है। और इसलिए अगर ये मशीनरी है तो उसमें लगातार उसकी साफ सुथरा होना उसकी overhauling होना, उसका lubricating ठीक है कि नहीं है, ये लगातार करते रहना होता है और testing भी करना होता है जी। high चलना ऐसा नहीं है testing करना होता है।
साथियों,
इन दिनों जमाना है AI का। हर कोई AI की चर्चा करता है, लेकिन भारत को AI से competition करनी है। सिर्फ भारत को AI का उपयोग नहीं करना है। हम सबके लिए बहुत बड़ी चुनौती है AI । दुनिया के लिए AI अवसर होगा, हिन्दुस्तान के लिए AI चुनौती है। और AI की AI से चुनौती है। AI का AI की कसौटी पर सवाल या निशान है। वो कौन से दो AI हैं। एक AI को तो दुनिया जानती है लेकिन दूसरे AI को मैं भलिभांति जानता हूं, और आपको भी बताऊंगा तो आपको भी लगेगा हां यार ये भी तो AI है, और वो है Aspirational India. Aspirational India ये मेरा सबसे बड़ा AI है और इसलिए मुझे एक तरफ मेरा AI है Aspirational India, और दूसरी तरफ मेरा AI है जो मार्डन टेक्नोलोजी को लेकर के आया है । Artificial Intelligence को लेकर के मैं समझता हूं कि हमनें इन दोनों को संतुलित रूप से स्वीकार करना होगा, और हमें हमारे लिए तवज़्ज़ो है Aspirational India. उसकी भलाई के लिए AI का उपयोग, अगर ये हम बड़ी खुबसूरती के साथ उसको knit कर सकते हैं Aspirational India के साथ मैं इन व्यवस्थाओं को जोड़ता हूं, तो मैं कितना बड़ा बदलाव ला सकता हूं, इसकी आप कल्पना कर सकते हैं।
साथियों,
Saturday है, छुट्टी का दिन है, दीवाली का दिन सामने है लेकिन ये मेरे लिए बहुत करीबी विषय है। मैं हमेशा मानता हूं कि व्यक्तित्व के विकास के लिए और व्यवस्थाओं के परिणामकारी बनने के लिए ये निरंतर शिक्षा बहुत अनिवार्य है जी। Upgradation बहुत आवश्यक है, उसी का एक संगठित प्रयास है, यही पूर्ण है ऐसा मैं नहीं कह रहा हूं, एक प्रयास है। हम इसको जितना ज्यादा जानदार बनाएंगे, जितना ज्यादा शानदार बनाएंगे और जितना ज्यादा नागरिक केंद्रीय बनाएंगे, हमारी खुशियों का भी पार नहीं रहेगा, हमें भी जीवन में एक नया संतोष मिलेगा, और ये संतोष ही तो नई ऊर्जा देता है, जो कभी थकने नहीं देता है, जो कभी थकान को प्रवेश करने नहीं देता है। रोज नए सपने को जन्म देता है, हर सपना एक संकल्प को लेकर के आता है और हर संकल्प सिद्धी प्राप्त करने के लिए परिश्रम की आकांक्षा पैदा कर देता है। और आधानिष्ठ, एकनिष्ठ समर्पित भाव से किया हुआ समर्पण उस परिश्रम परिणाम पर लाकर के छोड़ता है।
इसलिए साथियों मैं आपसे आग्रह करता हूं। देश भर के मेरे साथी जो आज मुझे सुन रहे हैं, मैं आपसे आग्रह करता हूं, हमारे पास वक्त बहुत कम है दोस्तों। 2047 आजादी के 75 साल में जो किया है उससे ज्यादा करना है। दुनिया के सामने डंके की चोट पर एक Developed Country के रूप में खड़े होना है दोस्तों। जो मिजाज आजाद होकर के रहने का था, जो मिजाज आजादी प्राप्त करने का था, उस मिजाज के समय हम पैदा नहीं हुए थे। आजादी के उस स्पिरिट के समय हम पैदा नहीं हुए थे, लेकिन स्वराज की इस बेला में हम एक समृद्ध भारत के लिए जरूर पैदा हुए हैं। हम उस सपने को लेकर के चलें, उसी मिजाज को जियें, हम परिणाम को प्राप्त करें, इसी अपेक्षा के साथ मेरी आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं हैं, बहुत बहुत धन्यवाद।
Discussed in detail the steps we have taken to change the mindsets of the working of government over the last ten years, whose impact is being felt by people today. This has become possible due to the efforts of the people working in the government and through the impact of…
- Narendra Modi (@narendramodi) October 19, 2024